- पद्मासन या कमल आसन बैठ कर की जाने वाली योग मुद्रा है जिसमे घुटने विपरीत दिशा में रहते हैं। इस मुद्रा को करने से मन शांत व् ध्यान गहरा होता हैं। कई शारीरिक विकारों से आराम भी मिलता है। इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से साधक कमल की तरह पूर्ण रूप से खिल उठता है, इसलिए इस मुद्रा का नाम पद्मासन है। चीनी व तिब्बती बौद्ध मान्यता में कमल आसन को वज्र आसन भी कहा जाता है।
-
- पद्मासन करने की प्रक्रिया | How to do Padmasana
- पैरों को सामने की ओर फैलाकर योगा मैट अथवा ज़मीन पर बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
- दाहिने घुटने को मोड़े और बहिनी जांघ पर रख दें, ध्यान रहे की एड़ी उदर के पास हो और पाँव का तलवा ऊपर की ओर हो।
- अब यही प्रक्रिया दूसरे पैर के साथ दोहराएँ।
- दोनों पैरों को मोड़ें, पाँव विपरीत जांघो पर,हाथों को मुद्रा स्थिति में घुटनो पर रखें।
- सिर सीधा व् रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
- इसी स्थिति में बने रहकर गहरी साँस लेते रहें।
- पद्मासन के लिए मुद्रा
- मुद्राएँ शरीर में ऊर्जा के संचार को बढ़ाती हैं और यदि पद्मासन के साथ किया जाये तो बेहतर परिणाम मिलते हैं। हर मुद्रा दूसरी मुद्रा से भिन्न है और उनसे होने वाले लाभ भी। पद्मासन में बैठ हुए चिन मुद्रा व चिन्मयी मुद्रा, आदि मुद्रा या ब्रह्म मुद्रा को अपनाकर आप अपने ध्यान में और गहराई ला सकते हैं। कुछ देर तक मुद्रा की स्थिति में रहते हुए, साँस ले व् शरीर में ऊर्जा के संचार को महसूस करें।
- जो लोग पहली बार पद्मासन कर रहे हैं वो कैसे यह आसन करें ? | Padmasana for Beginners
- यदि आपको दोनों पैरों को मोड़ कर पद्मासन में बैठने में परेशानी है तो आप अर्ध पद्मासन में बैठ सकते हैं,किसी भी पैर को विपरीत जांघ पर रखकर आप यह आसन कर सकते हैं।
- पद्मासन करने के लिए शरीर में लचीलापन होना आव्यशक है। जब तक आपके शरीर में लचीलापन न आ जाए, तब तक अर्ध पद्मासन का ही अभ्यास करें।
पद्मासन
कपालभाति प्राणायाम
कपालभाति प्राणायाम -
कपालभाती प्राणायाम एक प्रकार का श्वास व्यायाम है जो आपको विभिन्न बीमारियों से छुटकारा पाने मे मदद करता है।
बेशक ऋषि पतंजलि के योग सूत्र से हम इसे जानते है, लेकिन रामदेव स्वामीजी के कारण से इसकी लोकप्रियता से बढ़ गई है। कपालभाती रामदेव स्वामीजी के 6 प्राणायामों के सेट का हिस्सा है और इस सेट का अभ्यास पूरे भारत के साथ-साथ दुनिया के बाकी हिस्सों में भी फैला है।
नीचे कपालभाति योग प्राणायाम का विवरण दिया गया है।
बेशक ऋषि पतंजलि के योग सूत्र से हम इसे जानते है, लेकिन रामदेव स्वामीजी के कारण से इसकी लोकप्रियता से बढ़ गई है। कपालभाती रामदेव स्वामीजी के 6 प्राणायामों के सेट का हिस्सा है और इस सेट का अभ्यास पूरे भारत के साथ-साथ दुनिया के बाकी हिस्सों में भी फैला है।
नीचे कपालभाति योग प्राणायाम का विवरण दिया गया है।
कपालभाति क्या है | Kapalbhati Kya Hai
कपालभाति योग प्रणाली प्राणायाम का एक हिस्सा है जिसे शरीर की सफाई की जाती है। कपालभाती शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है: कपाल का अर्थ है 'माथा' और भाति का अर्थ है 'तेज'। कपालभाति का अभ्यास करने से चेहरा पर चमक से उत्पन्न तेज रहता है। प्रक्रिया के कारण मस्तिष्क अच्छे तरह से प्रभावित होते हैं। कपालभाती में छोटी और मजबूत बलवर्धक साँसें शामिल हैं ।कपालभाति के तीन प्रकार हैं | Kapalbhati Ke Prakar
- वातकृपा कपालभाति यह भस्त्रिका प्राणायाम के समान है इस का अभ्यास करते समय साँस रोकना और छोड़ना सक्रिय होता है ।
- विमुक्तकर्म कपालभाति जल जालि के समान होता है इसमें नाक के माध्यम से पानी लिया जाता है और मुँह से बाहर निकलना शामिल है।
- शीतकर्मा कपालभाती को विमुक्तकर्म कपालभाति का उलटा माना जा सकता है, जिसमें पानी मुंह से अंदर फिर नाक दवार बाहर निकाल दिया जाता है।
कपालभाति कब करे | Kapalbhati Kab Kare
कपालभाति का अभ्यास खाली पेट (भोजन के कम से कम तीन से चार घंटे बाद) किया जाना चाहिए, इस लिए आप सुबह उठने के बाद भी कर सकते है ।
कपालभाति प्राणायाम कैसे करें | Kapalbhati Kaise Kare
- आराम से रीढ़ को सीधा रखते हुए बैठें । यदि आप एक कुर्सी पर बैठे हैं, तो सुनिश्चित करें कि दोनों पैरों को जमीन पर रखें।
- शुरू करने से पहले अपनी नाक के दोनों छिद्रों के माध्यम से एक गहरी श्वास लें ।
- साथ ही पेट को भी अंदर की और बहार की ओर धकेले ।
- अपने फेफड़ों से सभी हवा को निष्कासित करें।
- इस चक्र को 10 बार लगतार रहे, फिर अपनी श्वास को सामान्य स्थिति में आने दें।
कपालभाति प्राणायाम के लाभ | Kapalbhati Ke Fayde
कपालभाति का नियमित अभ्यास करने वाले अधिकांश लोग आपको नियमित रूप से बताएंगे कि उनमे ऊर्जा में वृद्धि हुई है । चलिए जानते है कपालभाति प्राणायाम के फायदे बार मे और इसे करने से क्या क्या लाभ होता है।
- यह अतिरिक्त वात, पित्त और कफ को संतुलित करता है।
- फेफड़ों और श्वसन प्रणाली को साफ करता है।
- परिसंचरण में सुधार, विशेष रूप से सिर में होता है।
- मानसिक विकारों को दूर करने में मदद करता है ।
- अनिद्रा को दूर करता है, शरीर और मस्तिष्क में स्फूर्ति आती है।
- माथे को ठंड रखता है।
- इसका अभ्यास करने से पाचन अंगों में सुधार और भूख में सुधार होता है ।
- खून को साफ करता है।
- विषाक्त पदार्थों को शरीर से मुक्त करता है।
- रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन को बढ़ाता है और रक्त को शुद्ध करता है।
सावधानियाँ | Kapalbhati Karte Samay Savdhaniya
- कपालभाती का अभ्यास गर्भवती या मासिक धर्म वाली महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
- यदि आपको उच्च रक्तचाप, एसिड गैस्ट्रिक, हृदय रोग या पेट दर्द है, तो कपालभाति का अभ्यास न करें।
- अगर आपको चक्कर या बेचैनी महसूस होती है तो अभ्यास धीमा या बंद कर दे ।
आसन के प्रकार
- योग के आसनों को हम मुख्यत: छह भागों में बाँट सकते हैं:-
- ( 1). पशुवत आसन: पहले प्रकार के वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने और चलने-फिरने के ढंग के आधार पर बनाए गए हैं जैसे-
- 1. वृश्चिक आसन, 2.भुजंगासन, 3. मयूरासन, 4. सिंहासन, 5. शलभासन, 6. मत्स्यासन 7.बकासन 8.कुक्कुटास न, 9. मकरासन, 10. हंसासन, 11.काकआसन 12. उष्ट्रासन 13.कुर्मासन 14. कपोत्तासन, 15. मार्जरासन 16.क्रोंचासन 17.शशांकासन 18.तितली आसन 19.गौमुखासन 20. गरुड़ासन 21. खग आसन 22.चातक आसन, 23.उल्लुक आसन, 24.श्वानासन, 25. अधोमुख श्वानासन, 26.पार्श्व बकासन, 27.भद्रासन या गोरक्षासन, 28. कगासन, 29. व्याघ्रासन, 30. एकपाद राजकपोतासन आदि।
- ( 2). वस्तुवत आसन : दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे-
- 1. हलासन, 2.धनुरासन, 3.आकर्ण अर्ध धनुरासन, 4. आकर्ण धनुरासन, 5. चक्रासन या उर्ध्व धनुरासन, 6.वज्रासन, 7.सुप्त वज्रासन, 8.नौकासन, 9. विपरित नौकासन, 10.दंडासन, 11. तोलंगासन, 12. तोलासन, 13.शिलासन आदि।
- ( 3). प्रकृति आसन : तीसरी तरह के आसन वनस्पति, वृक्ष और प्रकृति के अन्य तत्वों पर आधारित हैं जैसे-
- 1. वृक्षासन, 2.पद्मासन, 3.लतासन, 4.ताड़ासन 5.पद्म पर्वतासन 6.मंडूकासन, 7.पर्वतासन, 8.अधोमुख वृक्षासन 9. अनंतासन 10.चंद्रासन, 11.अर्ध चंद्रासन 13.तालाबासन आदि
- ( 4). अंग या अंग मुद्रावत आसन : चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं जैसे-
- 1. शीर्षासन, 2. सर्वांगासन, 3.पादहस्तासन या उत्तानासन, 4. अर्ध पादहस्तासन, 5.विपरीतकर्णी सर्वांगासन, 6.सलंब सर्वांगासन, 7. मेरुदंडासन, 8.एकपादग्रीवासन, 9.पाद अँगुष्ठासन, 10. उत्थिष्ठ हस्तपादांगुष्ठासन, 11.सुप्त पादअँगुष्ठासन, 12. कटिचक्रासन, 13. द्विपाद विपरित दंडासन, 14. जानुसिरासन, 15.जानुहस्तासन 16. परिवृत्त जानुसिरासन, 17.पार्श्वोत्तानासन, 18.कर्णपीड़ासन, 19. बालासन या गर्भासन, 20.आनंद बालासन, 21. मलासन, 22. प्राण मुक्तासन, 23.शवासन, 24. हस्तपादासन, 25. भुजपीड़ासन आदि।
- ( 5). योगीनाम आसन : पाँचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी या भगवान के नाम पर आधारित हैं जैसे-
- 1. महावीरासन, 2.ध्रुवासन, 3. हनुमानासन, 4.मत्स्येंद्रासन, 5.अर्धमत्स्येंद्रासन, 6.भैरवासन, 7.गोरखासन, 8.ब्रह्ममुद्रा, 8.भारद्वाजासन, 10. सिद्धासन, 11.नटराजासन, 12. अंजनेयासन 13.अष्टवक्रासन, 14. मारिचियासन (मारिच आसन) 15.वीरासन 16. वीरभद्रासन 17. वशिष्ठासन आदि।
- ( 6). अन्य आसन :
- 1. स्वस्तिकासन, 2. पश्चिमोत्तनासन, 3.सुखासन, 4.योगमुद्रा, 5.वक्रासन, 6.वीरासन, 7.पवनमुक्तासन, 8.समकोणासन, 9.त्रिकोणासन, 10.वतायनासन, 11.बंध कोणासन, 12.कोणासन, 13.उपविष्ठ कोणासन, 14.चमत्कारासन, 15.उत्थिष्ठ पार्श्व कोणासन, 16.उत्थिष्ठ त्रिकोणासन, 17.सेतुबंध आसन, 18.सुप्त बंधकोणासन 19. पासासन आदि।
आसन
- आसन का शाब्दिक अर्थ है- संस्कृत शब्दकोष के अनुसार आसनम् (नपुं.)[आस्+ल्युट]1.बैठना,2.बैठने का आधार, 3.बैठने की विशेष प्रक्रिया 4.बैठ जाना इत्यादि। पातंजल योगदर्शन में विवृत्त अष्टांगयोग [यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा ध्यान समाधि]में इस क्रिया का स्थान तृतीय है जबकि गोरक्षनाथादि द्वारा प्रवर्तित षडंगयोग (छः अंगों वाला योग) में आसन का स्थान प्रथम है। चित्त की स्थिरता, शरीर एवं उसके अंगों की दृढ़ता और कायिक सुख के लिए इस क्रिया का विधान मिलता है। विभिन्न ग्रन्थों में आसन के लक्षण ये दिए गए हैं- उच्च स्वास्थ्य की प्राप्ति, शरीर के अंगों की दृढ़ता, प्राणायामादि उत्तरवर्ती साधनक्रमों में सहायता, चित्तस्थिरता, शारीरिक एवं मानसिक सुख दायी आदि। पंतजलि ने मनकी स्थिरता और सुख को लक्षणों के रूप में माना है। प्रयत्नशैथिल्य और परमात्मा में मन लगाने से इसकी सिद्धि बतलाई गई है। इसके सिद्ध होने पर द्वंद्वों का प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। किन्तु पतंजलि ने आसन के भेदों का उल्लेख नहीं किया। उनके व्याख्याताओं ने अनेक भेदों का उल्लेख (जैसे-पद्मासन, भद्रासन आदि) किया है। इन आसनों का वर्णन लगभग सभी भारतीय साधनात्मक साहित्य में मिलता है।
उज्जायी प्राणायाम
उज्जायी प्राणायाम : विधि, सावधानी और लाभ

- उज्जायी प्राणायाम क्या है
- ‘उज्जायी’ शब्द का अर्थ होता है- विजयी या जीतने वाला. इस प्राणायाम के अभ्यास से वायु को जीता जाता है. अथार्त उज्जयी प्राणायाम से हम अपनी सांसो पर विजय पा सकते हैं और इसलिए इस प्राणायाम को अंग्रेजी में विक्टोरियस ब्रेथ कहा जाता हैं. जब इस प्राणायाम को किया जाता है तो शरीर में गर्म वायु प्रवेश करती है और दूषित वायु निकलती है. उज्जायी प्राणायाम को करते समय समुद्र के समान ध्वनि आती है इसलिए इसे ओसियन ब्रीथ के नाम से भी जाना जाता है. इस प्राणायाम का अभ्यास शर्दी को दूर करने के लिए किया जाता है. इसका अभ्यास तीन प्रकार से किया जा सकता है- खड़े होकर, लेटकर तथा बैठकर.
- खड़े होकर करने की विधि
- 1- सबसे पहले सावधान कि अवस्था में खड़े हो जाएँ. ध्यान रहे की एड़ी मिली हो और दोनों पंजे फैले हुए हों.
- 2- अब अपनी जीभ को नाली की तरह बनाकर होटों के बीच से हल्का सा बाहर निकालें .
- 3- अब बाहर नीकली हुई जीभ से अन्दर की वायु को बहार निकालें .
- 4- अब अपनी दोनों नासिकायों से धीरे- धीरे व् गहरी स्वास लें .
- 5- अब स्वांस को जितना हो सके इतनी देर तक अंदर रखें .
- 6- फिर अपने शरीर को थोडा ढीला छोड़कर श्वास को धीरे -धीरे बहार निकाल दें .
- 7- ऐसे ही इस क्रिया को 7-8 बार तक दोहरायें .
- 8- ध्यान रहे की इसका अभ्यास 24 घंटे में एक ही बार करें .
- बैठकर करने की विधि
- 1- सबसे पहले किसी समतल और स्वच्छ जमीन पर चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन, सुखासन की अवस्था में बैठ जाएं.
- 2- अब अपनी दोनों नासिका छिद्रों से साँस को अंदर की ओर खीचें इतना खींचे की हवा फेफड़ों में भर जाये.
- 3- फिर वायु को जितना हो सके अंदर रोके .
- 4- फिर नाक के दायें छिद्र को बंद करके, बायें छिद्र से साँस को बहार निकाले.
- 5- वायु को अंदर खींचते और बाहर छोड़ते समय कंठ को संकुचित करते हुए ध्वनि करेंगे, जैसे हलके घर्राटों की तरह या समुद्र के पास जो एक ध्वनि आती है.
- 6- इसका अभ्यास कम से कम 10 मिनट तक करें.
- लेटकर करने की विधि
- 1- सबसे पहले किसी समतल जमीन पर दरी बिछाकर उस पर सीधे लेट जाए. अपने दोनों पैरों को सटाकर रखें .
- 2- अब अपने पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें .
- 3- अब धीरे–धीरे लम्बी व गहरी श्वास लें .
- 4- अब श्वास को जितना हो सके इतनी देर तक अंदर रखें .
- 5- फिर अपने शरीर को थोडा ढीला छोड़कर श्वास को धीरे -धीरे बहार निकाल दें .
- 6- इसी क्रिया को कम से कम 7-8 बार दोहोरायें .
- सावधानी
- इस प्राणायाम को करते समय कंठ में अंदर खुजलाहट एवं खांसी हो सकती है, बलगम निकल सकता है, लेकिन यदि इससे अधिक कोई समस्या हो तो इस प्राणायाम को न करें.
- लाभ
- श्वास नलिका, थॉयराइड, पेराथायराइड, स्वर तंत्र आदि को स्वस्थ व संतुलित करती है. कुंडलिनी का पंचम सोपान है. जल तत्व पर नियंत्रण लाती है.
अनुलोम विलोम प्राणायाम
- सबसे पहले चौकड़ी मार कर बैठें.
- इसके बाद दाएं अंगूठे से अपनी दाहिनी नासिका पकड़ें और बाई नासिका से सांस अंदर लें लीजिए.
- अब अनामिका अंगुली से बाई नासिका को बंद कर दें.
- इसके बाद दाहिनी नासिका खोलें और सांस बाहर छोड़ दें.
- अनुलोम विलोम हमारी श्वास प्रणाली को सुचारु करता है और इसे एक लय में लेकर आता है जिससे शरीर स्वस्थ होता है और सांस के रोग भी नहीं होते हैं। ... मानसिक तनाव को कम करने में भी अनुलोम विलोम बहुत ही फायदेमंद होता है। अगर नित्य रूप से इसे किया जाए, तो यह रक्त संचार को ठीक करके मानसिक तनाव को भी कम करता है
- अगर आप योगा के लिए शाम का वक्त चुन रहे हैं तो ध्यान रखें कि खाना खाने के 3-4 घंटे के बाद ही योगा करने की कोशिश करें। हल्के नाश्ते के एक घंटे बाद योगा किया जा सकता है।
Learn Yoga
योग में मुख्यतः हम प्राणायाम और आसान सिखाते हैं |
आईये योग सीखना शुरू करते है
सबसे पहले प्रणायाम -
हम इसमें आपको भस्त्रिका ,कपालभाती, अनुलोम विलोम प्राणायाम तथा उज्जायी प्राणायाम के बारे में बतायेंगे
भस्त्रिका प्राणायाम
इसमें आपको पदमासन की मुद्रा में बैठकर गहरी साँस लेनी हैं और बाद मे साँस को पूरी
तरह से बाहर छोड़ना है और इसी तरह इसको दोहराते रहना है |
यह शरीर से कई प्रकार की बिमारियों को काटता है
यह पहलवानों या जिनको bodybuilder बनना है उनके लिए फायदेमंद होता हैं और यह
बॉडी की immune system को भी मजबूत बनाता हैं तथा समस्त रोगों के प्रति प्रतिरोधक
क्षमता को बढाता है और यह lungs capacity को बढाता है इसे प्राण वायु भी कहते है |
भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं। इस प्राणायाम को करने से पहले पदाधीरासन का अभ्यास करना चाहिए।
प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वासों के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है। ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण भरे महौल और चिंता से हमारी श्वासों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो देती है जिसके कारण प्राणवायु संकट काल में हमारा साथ नहीं दे पाती।
क्यों जरूरी भस्त्रिका : व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता है पेट तक श्वास लेना छोड़ता जाता है। यही नहीं बल्कि अत्यधिक सोच के कारण वह पूरी श्वास लेना भी छोड़ देता है। जैसे-तैसे श्वास फेफड़ों तक पहुँच पाती है। इसी कारण शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। ऑक्सीजन की कमी के कारण जल और भोजन के लाभकारी गुण और तत्वों का भी हमें लाभ नहीं मिल पाता।
क्रोध, भय, चिंता, सेक्स के विचार से जहाँ हमारी श्वासों की गति परिवर्तित होकर दिल और दिमाग को क्षति पहुँचाने वाले तत्व ग्रहण करती है वहीं यह अस्वाभाविक गति हममें नकारात्मक ऊर्जा का लगातार संचार कर हमें जीवन के आनंद से अलग कर देती है। प्राणायाम से दिल और दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है इसके कारण यह सेहतमंद बने रहते हैं जोकि जीवन की सफलता और लंबी आयु के लिए आवश्यक है। यहाँ हम जानते हैं कि भस्त्रिका प्राणायाम हमें किस तरह लाभ पहुँचा सकता है।
विधि : सिद्धासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आँखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।
इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।
वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पाँच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।
सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्रतिदिन करने के लिए योगाचार्य की सलाह लें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएँ। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।
नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।
उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वासों की गति को पुन: सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुंभक करें या फिर कपालभाती पाँच बार अवश्य कर लें। योग प्रशिक्षक की सलाह अनुसार भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले एक गिलास पानी अवश्य पी लें।
चेतावनी : उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, हार्निया, दमा, टीबी, अल्सर, पथरी, मिर्गी, स्ट्रोक से ग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएँ इसका अभ्यास न करें। फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए। अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएँ।
इसके लाभ : इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है। तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं जो फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और हृदय में रक्त नलिकाओं को भी शुद्ध व मजबूत बनाए रखता है। भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है।
मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है। आँख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदायक है। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है। मोटापा, दमा, टीबी और श्वासों के रोग दूर हो जाते हैं। स्नायुओं से संबंधित सभी रोगों में यह लाभदायक माना गया है।
प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वासों के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है। ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण भरे महौल और चिंता से हमारी श्वासों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो देती है जिसके कारण प्राणवायु संकट काल में हमारा साथ नहीं दे पाती।
क्यों जरूरी भस्त्रिका : व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता है पेट तक श्वास लेना छोड़ता जाता है। यही नहीं बल्कि अत्यधिक सोच के कारण वह पूरी श्वास लेना भी छोड़ देता है। जैसे-तैसे श्वास फेफड़ों तक पहुँच पाती है। इसी कारण शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। ऑक्सीजन की कमी के कारण जल और भोजन के लाभकारी गुण और तत्वों का भी हमें लाभ नहीं मिल पाता।
क्रोध, भय, चिंता, सेक्स के विचार से जहाँ हमारी श्वासों की गति परिवर्तित होकर दिल और दिमाग को क्षति पहुँचाने वाले तत्व ग्रहण करती है वहीं यह अस्वाभाविक गति हममें नकारात्मक ऊर्जा का लगातार संचार कर हमें जीवन के आनंद से अलग कर देती है। प्राणायाम से दिल और दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है इसके कारण यह सेहतमंद बने रहते हैं जोकि जीवन की सफलता और लंबी आयु के लिए आवश्यक है। यहाँ हम जानते हैं कि भस्त्रिका प्राणायाम हमें किस तरह लाभ पहुँचा सकता है।
विधि : सिद्धासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आँखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।
इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।
वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पाँच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।
सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्रतिदिन करने के लिए योगाचार्य की सलाह लें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएँ। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।
नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।
उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वासों की गति को पुन: सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुंभक करें या फिर कपालभाती पाँच बार अवश्य कर लें। योग प्रशिक्षक की सलाह अनुसार भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले एक गिलास पानी अवश्य पी लें।
चेतावनी : उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, हार्निया, दमा, टीबी, अल्सर, पथरी, मिर्गी, स्ट्रोक से ग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएँ इसका अभ्यास न करें। फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए। अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएँ।
इसके लाभ : इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है। तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं जो फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और हृदय में रक्त नलिकाओं को भी शुद्ध व मजबूत बनाए रखता है। भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है।
मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है। आँख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदायक है। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है। मोटापा, दमा, टीबी और श्वासों के रोग दूर हो जाते हैं। स्नायुओं से संबंधित सभी रोगों में यह लाभदायक माना गया है।
About Yoga
- योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। ... व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। यह योग या एकता आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बँध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है।
- योग आपको तन तथा मन से स्वस्थ करता है
- यह सभी विकारों को दूर करने में मदद करता है
- इससे अपना स्वास्थ्य सही रहता है और यह प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने में मदद करता है।
- किसी भी प्रकार की खतरनाक बीमारी को क्योर करने में सफल हो रहा है
- उपरोक्त वर्णित योग का मुख्य सारांश है |
Subscribe to:
Comments (Atom)
पद्मासन
पद्मासन या कमल आसन बैठ कर की जाने वाली योग मुद्रा है जिसमे घुटने विपरीत दिशा में रहते हैं। इस मुद्रा को करने से मन शांत व् ध्य...
-
अनुलोम विलोम प्राणायाम सबसे पहले चौकड़ी मार कर बैठें. इसके बाद दाएं अंगूठे से अपनी दाहिनी नासिका पकड़ें और बाई नासिका से सांस अंदर लें ...
-
उज्जायी प्राणायाम उज्जायी प्राणायाम : विधि, सावधानी और लाभ उज्जायी प्राणायाम क्या है ‘उज्जायी’ शब्द का अर्थ होता है- विजयी या जीतने वाला. इ...
-
कपालभाति प्राणायाम - कपालभाती प्राणायाम एक प्रकार का श्वास व्यायाम है जो आपको विभिन्न बीमारियों से छुटकारा पाने मे मदद करता है। बेशक ऋषि पतं...
